पुरस्कार की गंदी रिश्वत (भाग-1)
धर्म – सनातन बच न पाये , अब्राहमिक – एजेंडा है ;
अब्बासी – हिंदू नेता कठपुतली , इसका ही हथकंडा है ।
अब्बासी-हिंदू कैसे बनते हैं ? झूठे इतिहास को पढ़ते-पढ़ते;
धार्मिक-शिक्षा से दूर हो चुके , गंदी-शिक्षा को लेते-लेते ।
चरित्र नष्ट करने की साजिश , विषकन्यायें लगा रखी हैं ;
अय्याशी खुलकर करवाते , वीडियोग्राफी करा रखी है ।
राक्षस की जान बंद तोते में , फोटोग्राफी का पिंजरा है ;
पुरस्कार की गंदी – रिश्वत , नोबेल – प्राइज का खतरा है ।
पूरी – पूरी कठपुतली है , डोर है पश्चिम – देशों में ;
बार – बार वे वहाँ बुलाते , नाच रहा आदेशों में ।
गांधी – युग से षडयंत्र चल रहा , अब तो है चरमावस्था ;
यदि हिंदू अब भी नहीं चेतता , लक्षण है पतनावस्था ।
पर महाविष्णु की कृपा हुई है,”एकम् सनातन भारत” आया
धर्म – सनातन की सेना है , अब्बासी – हिंदू घबराया ।
डर कर भाग रहा भारत से , करे विदेशी दौरे है ;
अंगड़ाई ले रहा सनातन , क्या बुजुर्ग क्या छोरे हैं ?
मुट्ठी भर जो चरित्रहीन हैं , करें देश से गद्दारी ;
वे अब्बासी – हिंदू के साथी , जिनकी गुंडों से है यारी ।
जाग रहा हिंदू – जनमानस , रावण की लंका जला रहे ;
आदिपुरुष पिक्चर पिट जाती , अब्बासी-हिंदू लगे रहे ।
तथाकथित ये हिंदू – नेता , धर्म को क्षति पहुँचाते हैं ;
बने टूलकिट अब्राहमिक के , नर्क – धाम को जाते हैं ।
इन सबकी लुटिया डूबेगी , कोई नहीं बचाने वाला ;
धर्म – सनातन के जो दुश्मन , कोई नहीं जीतने वाला ।
हो के रहेगी जब्त-जमानत , अबकी चुनाव में ये होगा ;
गुरु का नाम डुबोने वाला , सोच ले तेरा क्या होगा ?
म्लेच्छ – यवन के जितने साथी , करनी का फल भोगेंगे ;
मंदिर तोड़ बने गलियारा , जीते जी नर्क को भोगेंगे ।
महाविष्णु का चक्र सुदर्शन , ये नहीं है अब रुकने वाला ;
धर्म का द्रोही-पातक-अन्यायी , कोई नहीं बचने वाला ।
जागृत हो रही है हिंदू-जनता , ये जनार्दन प्रकटीकरण है ;
शुरू हो चुकी है प्रतिक्रिया , धरा रहेगा तृप्तिकरण है ।
निर्णायक-चुनाव आने वाला है , जो दूसरा-महाभारत है ;
धर्म – सनातन ही जीतेगा , “एकम् सनातन भारत” है ।