शुचिव्रत मिश्र ‘भृगु। सोशल मीडिया पर बड़ी कुटिलता के साथ शंकराचार्यों को खलनायक बना दिया गया है… इसका कारण है शङ्कराचार्यों का २२ जनवरी के कार्यक्रम में अयोध्या न जाना। वहां न जाने का धर्मसम्मत कारण भी दिया गया है लेकिन फिर प्रश्न दागा जाता है कि किया ही क्या है शङ्कराचार्यों ने? ये ठीक वैसा ही प्रश्न है जैसे एक कृतघ्न बालक अपने पिता से कहता है कि आपने किया ही क्या है मेरे लिए? तो संक्षेप में जान लीजिए..
खैर, जब इतना पूछा ही जा रहा है तो बता देते हैं कि क्या किया है। प्रारम्भ आदि शङ्कर से करते हैं।
१. बौद्धों का प्रकोप। सर्वत्र वेदों की भर्त्सना। वैदिक धर्म लुप्त हो रहा है। ऐसे में प्रादुर्भाव होता है भगवान् आद्य शङ्कराचार्य का। उनकी भारत दिग्विजय यात्रा होती है और पुनः भारत में वेदों का उत्थान होता है। सुधन्वा का शोधन होता है और फिर चार पीठों की स्थापना होती है। और इस प्रकार बौद्धों के अत्याचार के पङ्क से सनातन का नवकमल प्रस्फुटित होता है।
२. समय बीतता है। बङ्गाल में श्रीचैतन्यमहाप्रभु का प्रदुर्भाव होता है और उसी समय श्रीशङ्कराचार्य श्रीधरीटीका की रचना करते हैं जिसपर स्वयं श्रीगौरङ्ग भी लट्टू हुए बिना नहीं रहे। श्रीधरीटीका से उत्तम कोई टीका नहीं हुई आजतक भागवत पर। खैर कथित हिन्दुओं के लिए इसका कोई अर्थ नहीं है ये मुझे पता है।
३. समय और बीतता है और श्रीशङ्कराचार्य ही समूचे विश्व को वैदिक गणित का वरदान देते हैं। फादर ऑफ वैदिक मैथेमेटिक्स गूगल कर के कोई भी यह जान सकता है।
४. समय और आगे बढ़ता है और श्रीशङ्कराचार्यादि सन्त गौरक्षा का आन्दोलन छेड़ देते हैं। धर्मसम्राट संसद का घेराव करते हैं और फिर जो हुआ वो सबको ज्ञात है। रामराज्य परिषद् का गठन होता है। चुनाव होते हैं, कुछ सदस्य सदन भी पहुंचते हैं।
५. समय कुछ और आगे बढ़ता है और देश में राम मन्दिर का मुद्दा उठता है। राम मन्दिर हेतु ही रामालय ट्रस्ट का गठन होता है। कांग्रेस की भावना आधे भूमि में मन्दिर और आधे भूमि में मस्जिद बनाने की होती है जिसे शङ्कराचार्य ही निरस्त कर देते हैं।
६. फिर आगे अटल बिहारी वाजपेई की सरकार आती और उनकी भी भावना मन्दिर मस्जिद दोनों बनाने की होती है जिसे पुनः शङ्कराचार्य ही निरस्त करते हैं। एक बार और शङ्कराचार्य द्वारा ही अधर्म को रोका गया।
७. फिर कुछ कालखण्ड बीतता है और शङ्कराचार्य ही साईं बाबा के विरुद्ध मोर्चा खोल देते हैं। प्रथम बार किसी ने साईं बाबा के विरुद्ध मोर्चा खोला था।
८. इसी राम मन्दिर के लिए शङ्कराचार्य अनेकों आन्दोलन करते हैं, प्रमाण देते हैं और यहां तक कि विवादित ढांचे को भी मन्दिर ही सिद्ध कर देते हैं।
९. मन्दिर से इतर भी देखें तो हजारों परिवर्तित ईसाई आदि को पुनश्च सनातनी बनाने का कार्य भी शङ्कराचार्य ने ही किया है। जिस कालखण्ड में जाति का नाम लेना भी अपराध माना जाने लगा उस काल में भी शङ्कराचार्य वर्णाश्रम का मुखर होकर समर्थन करते रहे।
धर्म और शास्त्र की मर्यादा की रक्षा के लिए शङ्कराचार्यों ने अपनी बोटी बोटी गलाई है। बहुत सरल है “चरबी वाला” बोल देना लेकिन कभी निकट से जाकर देखिए, हड्डियों से झूलते मांस पर चिपकी त्वचा उनके तपगाथा का वर्णन स्वतः करती है। जिस आयु में हम आप खटिया धर लेते हैं उस आयु में भी गांव गांव जाकर धर्म की अलख जगाते हैं वे, जानते हैं क्यों? क्योंकि नारायण को बीज की रक्षा अभीष्ट है। खैर, इतने से भी कथित हिन्दुओं को संतोष नहीं दिलाया जा सकता क्योंकि उनकी मान्यतानुसार शङ्कराचार्य को भाजपा का प्रचार करना चाहिए, नरेन्द्र मोदी को अपने सर्वेसर्वा मान लेना चाहिए। इनके अनुसार धर्मदण्ड को राजदण्ड के अधीन होना चाहिए। इन्हे यह ज्ञात नहीं कि श्रीमन्नारायण के बाद श्रीशङ्कराचार्य का ही स्थान है। स्वयं देवराज इन्द्र भी शङ्कराचार्य के समक्ष कुछ नहीं हैं तो भारत के प्रधानमंत्री क्या चीज हैं?
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ईसाइयों के पादरी जी यदि व्यभिचार भी करें तो ईसाई मरते दम तक उनको डिफेंड करेगा, मुसलमान प्राण देकर अपने इमाम, मौलाना आदि को डिफेंड करेगा लेकिन हिन्दू अपने ही सर्वोच्च धर्माचार्य को अपशब्द कहेगा क्योंकि धर्माचार्य राजनीति के गुलाम नहीं हैं, राजनेताओं का चरणवंदन नहीं करते। और धर्माचार्यों का अपमान करने की ये आदत इन्हे रसातल में पहुंचाए बिना नहीं रहेगी।
नारायण नमः
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