विपुल रेगे। सीरियल किलर चार्ल्स सोभराज को बिकिनी किलर, स्प्ल्टिंग किलर और द सरपेंट के नामों से जाना जाता है। इनमे से द सरपेंट नाम उसके अबूझ व्यक्तित्व पर जंचता है। सरपेंट का अर्थ होता है एक बड़े आकार का विषधर। चार्ल्स नामक विषैले सर्प ने जाने कितने युवाओं की ज़िंदगी को डंस लिया था। वह अन्य सीरियल किलर्स की तरह पुलिस को कभी चुनौती नहीं देता था। सर्प होने के साथ उसमे कॉकरोच के भी गुण विद्यमान थे। जैसे कॉकरोच कमरे में महज रोशनी होते ही निकल भागता है, वैसे ही चार्ल्स पुलिस की आहट होते ही मानो हवा में विलीन सा हो जाता था। नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित हुई वेबसीरीज द सरपेंट देखते हुए आपको महसूस होगा कि चमकदार चमड़ी वाले इस विषधर के बारे में आप सच में कुछ नहीं जानते थे।
इस वेबसीरीज को बीबीसी वन और नेटफ्लिक्स ने मिलकर बनाया है। चार्ल्स की इस कहानी को देखना सत्तर के दशक की एक लंबी यात्रा करने जैसा अनुभव है। आठ घंटे की ये सीरीज चार्ल्स की कथा को वैसे ही प्रस्तुत करती है, जैसी कि वह थी। निर्देशक जोड़ी ने इसमें अतिरिक्त ग्लैमर डालने का प्रयास नहीं किया है। ये वेबसीरीज चार्ल्स की खोजबीन के दस्तावेजों के आधार पर बनाई गई है, इसलिए बहुत वास्तविक लगती है।
ये एक बेहतरीन टीम वर्क का परिणाम है। चार्ल्स ने उन हिप्पी युवाओं को अपना शिकार बनाया, जो विभिन्न देशों से नेपाल, बैंकॉक और भारत आते थे। निर्देशक ने चार्ल्स का किरदार इतने बारीक तंतुओं से बुना है कि जब वह परदे पर आता है तो दर्शक में जुगुप्सा के भाव जागते हैं और इसी व्यक्तित्व से दर्शक सम्मोहित भी होता है।
ताहिर रहमान का सहज स्वाभाविक अभिनय इस फिल्म की यूएसपी है। चार्ल्स जब अपना महंगा चश्मा हटाकर शिकार को घूरता है तो दर्शक को लगता है किसी सर्प ने चूहे पर घात लगा ली है और वह उसे बस खा जाने वाला है। असली चार्ल्स सोभराज की ऑंखें भावहीन थी। वह किसी भी तरह की संवेदना से परे थी।
ताहिर रहमान की आँखों में चार्ल्स का कपटीपन हमें दिखाई देता है। ऐसा नहीं है कि निर्देशक जोड़ी ने केवल चार्ल्स के किरदार को ही शक्तिशाली बनाया हो। इस फिल्म का हर किरदार बहुत सूक्ष्मता के साथ गढ़ा गया है। जैसे बैंकाक की डच एम्बेसी में काम करने वाला हरमन कीपनबर्ग का किरदार। ब्रिटिश अभिनेता बिली हाउले ने कीपनबर्ग का किरदार निभाया है।
इसी डच डिप्लोमेट के कारण चार्ल्स पुलिस के हाथ आया। कीपनबर्ग अपने देश के युवाओं की हत्या से बेहद नाराज है। वह इस बात से भी रुष्ट है कि उसके देश का राजदूत भी इन हत्याओं को लेकर गंभीर नहीं है। वह चार्ल्स जैसा तीक्ष्ण बुद्धिशाली नहीं है लेकिन ऐसी खोज करता है कि चार्ल्स की पहचान संसार के सामने आती है।
ऐसा ही एक किरदार है मॉरी एंड्री का। ब्रिटिश अभिनेत्री जेन्ना कोलमेन ने ये किरदार निभाया है। मॉरी द सरपेंट की सहशायिनी है। वह उसकी भयानक वास्तविकता जानते हुए भी प्रेम करती है। मॉरी उसके अपराधों में सहभागिनी है। फ्रेंच अभिनेत्री मैथिल्डे वार्नर ने नदीन गिरेस का किरदार निभाया है। ये किरदार बड़ी गहराई से प्रस्तुत किया गया है।
आठ घंटे की ये वेबसीरीज दर्शक को बांधे रखती है तो उसके और कई कारण हैं। द सरपेंट एक टाइम ट्रेवल की तरह है। सत्तर के दशक का बैंकाक, भारत और नेपाल परदे पर दिखाना आसान नहीं होता। यहाँ निर्देशक इस कदर प्रभावशील हैं कि हम स्वयं को उस कालखंड का एक हिस्सा महसूस करने लगते हैं।
द सरपेंट जब नशीली दवा के असर से मदहोश टूरिस्ट का गला काटता है तो दर्शक का खून ये दृश्य देखकर जम सा जाता है। अभिनय, निर्देशन, आर्ट डायरेक्शन, स्क्रीनप्ले यानी हर डिपार्टमेंट में फिल्म अचूक है। ये फिल्म उनको देखनी चाहिए, जो चार्ल्स सोभराज को समीप से जानना चाहते हैं। वह अपराधी कैसे बना, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या थी, वह कितना चालाक और चार्मिंग था। ये फिल्म वयस्क दर्शकों को ही देखनी चाहिए।
चार्ल्स एक आकर्षक सर्प था, जिसका मुंह बैंकॉक में होता था, तो पूंछ काठमांडू में निकलती थी। आज वह 77 वर्ष का हो चुका है और काठमांडू की जेल में हत्या के अपराध की सज़ा काट रहा है। उसे स्मृतिभ्रम हो गया है। अब उसे ये भी याद नहीं रहता कि वह खुद कौन है।
डच लोग आज भी उसके रिहा होने की प्रतीक्षा करते हैं ताकि उसे अपने देश ले जाकर सज़ा दे सके। आखिर एक निष्ठावान डच अधिकारी के दृढ़ संकल्प के चलते सांप को पोटली में कैद कर लिया गया था। द सरपेंट सिर झटककर बिसरा देने वाली फिल्म नहीं है। ये आपको कई दशक तक याद आने वाली है। बॉलीवुड चाहे तो सीख सकता है कि किसी वास्तविक व्यक्तित्व पर सजीव फ़िल्में कैसे बनाई जाती है।