स्वार्थ हीन जीवन जब होता , सच्चा सुख मिलने लगता है ;
लोभ – लालच जाने लगते हैं , अहंकार गलने लगता है ।
ऊंच-नीच का भेद न रहता , केवल एक ही सत्ता रहती ;
पीएम हो या हो चपरासी , एक सी स्थिति उनकी लगती ।
कोई आये या फिर जाये , सब माया का खेला लगता ;
जन्म – मरण का भेद न रहता , सपना सा लगने लगता ।
सुख से जगता सुख से सोता, सुख ही सुख उसको होता है;
अज्ञानी मानव बदनसीब है , सच्चा-सुख हरदम खोता है ।
पर ये सुख उसको ही मिलता , चरित्रवान जो होता है ;
चरित्र की दौलत सबसे बड़ी है, इसी से सब कुछ पाता है ।
सबसे बड़ा दरिद्र वही है , जिसके पास चरित्र नहीं है ;
तृष्णा उसे जलाती रहती, कभी भी उसको शांति नहीं है ।
मूरख मानव तभी संभलता,कई जन्मों तक जब दुख पाता;
ठोकर पर ठोकर जब लगती , तभी सही राह पर आता ।
महामूर्ख हैं नेता अफसर , जिनका जीवन चरित्रहीन है ;
कभी नहीं ये सुख पायेंगे , ये तो सारे भाग्यहीन हैं ।
ईश्वर कृपा नहीं है इन पर , इनका सब -कुछ शैतानी है ;
ऐसी जगह मरेंगे सारे , जहां न मिलता पानी है ।
मर कर भी न सुख पायेगें , नरक की आग में जलना है ;
जैसे बीज इन्होंने बोये , वैसी ही फसल को मिलना है ।
सिद्धांत कर्म का सदा अटल है , फलीभूत होकर ही रहेगा ;
धर्म -सनातन का जो दुश्मन ,वो मजहब मिटकर ही रहेगा ।
धर्म -सनातन चमक रहा है , अंधकार मिट जायेगा ;
वामी ,कामी ,जिम्मी ,जेहादी , अब देर नहीं, पिट जायेगा ।
चौहत्तर वर्षों से घोर अंधेरा , अब सूर्योदय होने वाला है ;
चरित्रहीन और भ्रष्टाचारी , हर नेता जाने वाला है ।
धर्म -सनातन के अमृत से , जहर ये सारे मिट जायेंगे ;
धर्म -राह पर चल कर देखो , सारे पाप कट जायेंगे ।
गांधी – नेहरू के जितने चेले , मिट्टी में मिल जायेंगे ;
कामवासना के सब पुतले , उसी आग में जल जायेंगे ।
उदय हो रहा धर्म का सूरज , अंधकार सब सिमट जायेंगे ;
धन्यवाद है सोशल मीडिया ,अब सारे पापी निपट जायेंगे ।
सबकी रक्षा धर्म करेगा , पर पहले तुम इस राह पे आओ ;
अब न करना देर तनिक भी , देश को हिंदू -राष्ट्र बनाओ ।
“वंदेमातरम-जयहिंद”
रचयिता:ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”