विपुल रेगे। फिल्म निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा की ‘ट्वेल्थ फेल’ एक प्राइसलेस प्रोडक्ट है। कलेक्शन के आधार पर इसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। मध्यप्रदेश के बारुदी जिले मुरैना से निकलकर मनोज कुमार शर्मा आईपीएस अधिकारी बने। उनकी जीवन यात्रा पर इन्दौर के अनुराग पाठक ने एक किताब ‘ट्वेल्थ फेल’ लिखी। इस प्रेरणास्पद किताब पर ही विधु विनोद ने ये प्रेरणादायी फिल्म रच दी है। भारत जैसे देश में जहाँ लाखों युवा आईएस-आईपीएस जैसी कठिन अग्निपरीक्षा में खुद को झुलसाते हैं। ये झुलसन तब और प्रगाढ़ हो जाती है, जब स्टूडेंट निहायत ही गरीबी में पल रहा हो। अनुराग पाठक की किताब पर विधु विनोद का ये ‘टेक’ अद्भुत रंग लाया है।
विधु विनोद चोपड़ा के निर्देशन कॅरियर में ‘परिंदा’ इकलौती हिट फिल्म है। ‘1942: अ लव स्टोरी’ और ‘मिशन कश्मीर’ जैसे बड़े हादसे भी उनके खाते में दर्ज हैं। ‘करीब’ को प्रशंसा तो मिली लेकिन व्यावसायिक सफलता नहीं मिल सकी।अब उन्होंने ‘ट्वेल्थ फेल’ बनाई है। शुक्रवार को फिल्म लगभग खाली रही। विक्रांत मैसी कोई बड़ा नाम नहीं है इसलिए पहले दिन का उन्माद इस फिल्म को नहीं मिल सका। मनोज कुमार शर्मा की जीवन यात्रा को विधु विनोद ने सुंदरता से पेश किया है। ये एक मुकम्मल फिल्म है। विक्रांत मैसी के उम्दा अभिनय पर सवार ‘ट्वेल्थ फेल’ फिल्म मेकिंग की हर शर्त पर खरी उतरती है।
प्रस्तुतिकरण और स्क्रीनप्ले में वह आकर्षण है कि एक साधारण कहानी में भी दर्शक रम जाता है। जिन चंद दर्शकों ने ये फिल्म देखी है, उन्होंने अपनी आँखों को कई बार नम पाया है। फिल्म का भाव पक्ष अत्यंत प्रबल है। विक्रांत ने मनोज कुमार शर्मा का किरदार निभाकर अपने अभिनय की यात्रा के मार्ग पर बड़ा सा मील का पत्थर गाड़ दिया है। विक्रांत कोई मसल मैन नहीं हैं और न चार्मिंग फेस लेकर इंडस्ट्री में आए हैं। जीवंत अभिनय इस निर्मम इंडस्ट्री में उनका एकमात्र हथियार रहा है। यदि अगले वर्ष के पुरस्कार समारोहों में आप विक्रांत को मंच से पुरस्कार ग्रहण करते देखें, तो आश्चर्य मत कीजियेगा।
ये फिल्म युवाओं और युवा हो रहे बच्चों को ज़रुर देखना चाहिए। भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कितनी मारामार है, कोचिंग्स में शिक्षा कितनी महंगी है, गरीब अभिभावक होने पर उच्च शिक्षा प्राप्त करना कितना मुश्किल हो जाता है, ये विधु विनोद ने ईमानदारी से दिखाया है। मेधा शंकर, अंशुमान पुष्कर, हरीश खन्ना ने भी लाजवाब अभिनय किया है। अंशुमन पुष्कर फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। उन्होंने एक प्रेरणादायी पात्र का निर्वाह किया है। गौरी भईया नामक ये पात्र परीक्षा क्लियर नहीं कर सका लेकिन अन्य छात्रों के लिए एक लाइट हाउस का काम करता है। अंशुमन ने हृदयस्पर्शी अभिनय किया है।
निर्देशक ने हमारे सिस्टम की सड़ांध को यथार्थ में प्रस्तुत किया है। मनोज कुमार शर्मा के पिता को इसलिए सस्पेंड किया जाता है, क्योंकि वे विधायक के भ्रष्टाचार का हिस्सा बनने से इनकार कर देते हैं। जीवन भर वह पिता अपनी निष्ठा लिए कोर्ट के चक्कर काटने पर विवश होता है।
इस विषय पर ऋत्विक रोशन को लेकर रवि बहल ने ‘सुपर 30’ बनाई थी। हालाँकि वह फिल्म एक मोड़ पर ‘मसाला फिल्म’ बन गई थी लेकिन ‘बारहवीं फेल’ के साथ ऐसा नहीं है। ये फिल्म प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने वालों के संघर्ष और कठिनाईयों को ‘वाइड एंगल’ में पेश करती है। निर्देशक इसे मसालेदार और मनोरजंक बनाने के लिए अलग से कुछ नहीं जोड़ते हैं। वे मूल कथा पर कायम रहते हैं।
विधु विनोद के निष्ठावान निर्देशन को अब तक तो दर्शक का प्रतिसाद नहीं मिला है लेकिन ऐसा लगता है कि सकारात्मक माउथ पब्लिसिटी के बाद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ अच्छा करने में सफल हो सकती है। फिल्म का बजट मात्र तीस करोड़ है। फिल्म में करोड़ों की फीस लेने वाला कोई सितारा नहीं है, इसलिए इस बजट में एक स्तरीय फिल्म बनाना संभव हो सका। इस शुक्रवार विधु विनोद चोपड़ा की ‘बारहवीं फेल’ टिकट खिड़की को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित कर रही है। हालांकि कम दर्शकों की आमद से इसका स्वागत कुछ फीका सा हुआ है। इसे आप सपरिवार देख सकते हैं और विशेष रुप से उन बच्चों को दिखा सकते हैं, जिन्हे पढ़ाई और उसके मूल्य के बारे में कुछ भी मालूमात नहीं है।