विपुल रेगे। रक्तांचल के दूसरे सीजन की अच्छी बात ये है कि ये एंगेजिंग है। इसकी कथा में दर्शक रम जाता है। इस बार रक्तांचल से रक्त की धार कम बही है और राजनीति के मोहरे खूब दौड़े हैं। दूसरा अध्याय कुछ कमियों के साथ दर्शक को पसंद आएगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। मनोरंजन की दृष्टि से रक्तांचल का प्रस्तुतिकरण मनोरम है और सहज आकर्षण जगाता है।
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रक्तांचल का पहला सीजन सुपरहिट रहा था। उसके सफल होने का कारण एक कसी हुई पटकथा थी, जो उत्तरप्रदेश की सुरम्य पृष्ठभूमि में और भी रेखांकित हो उभरी थी। पहले सीजन में विजय सिंह और वसीम खान के बीच गैंगवार छिड़ गई थी। सीजन के अंत में विजय सिंह को मृत मान लिया गया था। दूसरे सीजन के पहले एपिसोड में विजय सिंह प्रकट होता है।
विजय सिंह को प्रश्रय देने वाला रामानंद राय दोहरा खेल खेलते हुए पुलिस को उसके जीवित होने की सूचना पहुंचा देता है। इधर उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री के अस्वस्थ होते ही सियासी घोड़े दौड़ने लगते हैं। मुख्यमंत्री पद के लिए रामानंद राय, वसीम खान और सरस्वती देवी अपनी-अपनी चाल चलना शुरु करते हैं। घात-प्रतिघात का ये खेल एपिसोड दर एपिसोड रोचक होता चला जाता है।
इस सीजन की दो विशेषताएं हैं। निर्देशक रितम श्रीवास्तव ने कैरेक्टर स्कैच बहुत अच्छे किये हैं। रामानंद राय का कैरेक्टर सबसे जटिल था। निर्देशक ने इस किरदार के बहुत ही रहस्यमयी शेड्स रखे हैं। आशीष विद्यार्थी जैसा अभिनेता ही इस कैरेक्टर के साथ न्याय कर सकता था। रामानंद राय शतरंज के इस खेल का सबसे शक्तिशाली मोहरा है, जो बड़ी कुटिलता के साथ मुख्यमंत्री पद की ओर बढ़ा जा रहा है।
क्रांति प्रकाश झा अब एक स्टार बन चुके हैं। विजय सिंह का कैरेक्टर तो पिछले सीजन में ही लोकप्रिय हो गया था। क्रांति बड़ी सहजता से कैमरे का सामना करते हैं। उनकी ये खूबी उन्हें बहुत आगे ले जाने वाली है। माही गिल ने तो जबर्दस्त ढंग से चौंकाया है। उनका किरदार बसपा नेता मायावती से प्रेरित है। उनका पहनावा और बॉडी लेंग्वेज देखकर कई बार उनके बहनजी होने का भ्रम हो जाता है।
माही गिल का किरदार जितना सशक्त लिखा गया है, वैसा ही उन्होंने उसे निभाया है। वसीम खान का कैरेक्टर इस सीजन की एकमात्र त्रुटि है। निकितन धीर वसीम खान के किरदार में घुस नहीं पाए हैं। उनके पास दिखाने को ज्यादा शेड्स नहीं होते। ये कैरेक्टर इस सीजन का एक कमज़ोर पक्ष है। बेचन चाचा के किरदार में चित्तरंजन त्रिपाठी ने तो कमाल ही कर दिया है।
उनका किरदार हमें वसीम खान के किरदार से अधिक याद रहता है। सनकी पांडे का किरदार पहले सीजन में बहुत चर्चित रहा था। इस बार भी ये किरदार छाया हुआ है। सनकी पांडे की भूमिका विक्रम कोचर ने निभाई है। ये एक ऐसा किरदार है, जो धाकड़ अभिनेताओं के सामने अपनी छाप छोड़ने में सफल रहता है। रक्तांचल की सिनेमेटोग्राफी का उल्लेख आवश्यक हो जाता है।
विजय मिश्रा का कैमरा संचालन रक्तांचल की सुंदरता बढ़ाता है। विशेष रुप से गंगा नदी में नौका विहार वाले दृश्य अत्यंत मनोरम प्रतीत होते हैं। मिश्रा के कैमरे से इस वेब सीरीज में भव्यता आती है। रक्तांचल का दूसरा सीजन फिर ऐसे बिंदु पर छोड़ा गया है कि तीसरे भाग की संभावनाएं बन गई है। निश्चित ही इसका तीसरा सीजन आएगा, जिसमे मनोरंजन और भी उम्दा होने की अपेक्षाएं हैं।