श्वेता पुरोहित। श्रीरामरामरघुनन्दन राम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम श्रीराम राम शरणं भव राम राम ।।
श्रीराम रघु के वंशज हैं । श्रीराम भरत के ज्येष्ठ भ्राता हैं । श्रीराम युद्ध में शत्रुओं का दमन अंत्यन्त कठोरता से करते हैं। हे राम! मैं आपकी शरण में हूँ, आप मेरी रक्षा करें ।
पाञ्चरात्र आगम में भगवत्तत्त्व के छः भेद बताए गए हैं ।
१. पर, २. व्यूह, ३. विभव, ४. अन्तर्यामी, ५. अवतार एवं
६. अर्चा ।
१. पर – यह सगुण साकार तत्त्व है और निर्गुण निराकार से नित्य अभिन्न है। यह ‘पर’ तत्त्व ही उपास्य होता है।
२. व्यूह – एक होकर भी वह ‘पर’ तत्त्व चतुर्धा रूप में अभिव्यक्त होता है।
३. विभव – विष्णु के पद्मनाभ आदि ४४ विभवावतार कहे गए हैं ।
४. अन्तर्यामी – अणु-अणु में जो उसका संचालक चेतन बैठा है वह निर्गुण नहीं है और तटस्थ दृष्टा भी नहीं है । वह ‘उत्प्रेरक’ होकर अन्तर्यामी है।
५. अवतार – पूर्ण, अंश, कला एवं आवेशादि अवतार के रूप में विष्णु के चौबीस अवतारों का वर्णन है।
६. अर्चा – भगवन् की मूर्ति साक्षात् भगवान् ही हैं । यह मूर्ति नित्य सिद्ध होती हैं और स्थापित होती है । शालग्राम, नर्मदेश्वर एवं स्वयंभूलिङ्ग नित्य सिद्ध अर्चा हैं । प्राणप्रतिष्ठा की गई मूर्ति स्थापित होती है ।
भगवत्तत्त्व के छः भेदों में से श्रीराम अवतार भेद के अन्तर्गत हैं
श्री राम का अवतार त्रेतायुग में हुआ था । दशावतार में राम परशुराम के बाद हुए थे। उत्तरप्रदेश के अयोध्या नगरी में रघुवंशियों में महाराजा दशरथ का शासन था और मिथिला में राजा जनक का शासन था। राजा जनक की कन्या सीता से जब राम का विवाह हुआ तो जनक ने इतने रत्न दिये कि अयोध्या में जहाँ लाकर रखा गया वहाँ उन रत्नों का पहाड़ बन गया । यह पहाड़ ‘मणिपर्वत’ नाम से आज भी प्रसिद्ध है। इस मणिपर्वत पर राम, सीता, लक्ष्मण एवं हनुमान् आदि रामदरबार का मन्दिर है। विशेष बात यह है कि अयोध्या नगरी में यह मणिपर्वत समस्त अयोध्या के मध्य में विद्यमान है और इस पर्वत से सारी अयोध्या दिखाई पड़ती है। राजा विक्रमादित्य के काल से जहाँ राम का जन्म हुआ था वहाँ कनक भवन बना हुआ है।
जब दस हजार वर्षों तक अयोध्या का शासन करके राम साकेत जाने लगे तो एक कथा के अनुसार यमराज रामचन्द्र जी से बात करने के लिये आये और उन्होंने यह बात कही कि यदि हमारे और आपके बीच में कोई भी आ जाएगा तो निश्चित रूप से उसकी मृत्यु हो जाएगी। लक्ष्मण शेषावतार थे और बातचीत के मध्य जब लक्ष्मण एकाएक उपस्थित हो गए तब राम ने लक्ष्मण से कहा कि आज से मैं तुम्हें त्याग रहा हूँ और अयोध्या नगरी में सरयू नदी के तट पर गुप्तारघाट पर आकर रामचन्द्र जी ने सरयू नदी में गुप्त होकर अपनी लीला का सम्वरण कर लिया । इसीलिये इस घाट का नाम विक्रमादित्य के काल से गुप्तारघाट कहा जाता है।
कहते हैं कि जहाँ पर हनुमान् जी को रामचन्द्र जी ने चिरंजीवित्व का आशीर्वाद दिया था वह स्थान हनुमानगढ़ी के नाम से जाना जाता है। हनुमानगढ़ी में हनुमान् जी का जाज्वल्यमान विग्रह आज भी विद्यमान है। इस नगरी में रामानुज सम्प्रदाय के अनेक आश्रम एवं मठ विद्यमान हैं। शास्त्र के अनुसार हनुमान् जी को अयोध्या का शासन प्रदान कर श्रीराम अपने साकेत लोक को चले गए।
श्री राम राम रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥